उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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गोदान--मुंशी प्रेमचंद पुर चलने लगा। धनिया को होरी ने न आने दिया। रूपा क्यारी बराती थी। और सोना मोट ले रही थी। रूपा गीली मिट्टी के चूल्हे और बरतन बना रही ...

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